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जानिए क्या है Places of Worship Act 1991 और सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रखा है अयोध्या के राम मंदिर के मामले को इससे अलग

नई दिल्ली, प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार ने और समय देने का अनुरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी के पहले हफ्ते में सुनवाई की बात कही. सुनवाई के दौरान याचिका करने वालों में से एक सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि उन्होंने पूरे कानून को चुनौती नहीं दी है. सिर्फ 2 मंदिरों को इसके दायरे से बाहर रखने की मांग है. इस पर कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई में विचार होगा कि स्वामी की याचिका सबके साथ सुनी जाए या उसे बाकी मामलों से अलग कर दिया जाए.

पूजा स्थल कानून 1991 (Places of Worship Act 1991) को लेकर विवाद पर 12 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई थी. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ मामले पर सुनवाई कर रही है. पूजा स्थल कानून 1991 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली ये याचिकाएं सेना के रिटायर्ड अधिकारी अनिल काबोत्रा, वकील चंद्रशेखर, देवकीनंदन ठाकुर, स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती, रुद्र विक्रम सिंह और बीजेपी के पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय ने दाखिल की हैं.

डेढ़ साल से केंद्र ने जवाब नही दिया
याचिकाकर्ता अनिल काबोत्रा ने भी पूजा स्थल कानून 1991 की धारा 2, 3 और 4 की संवैधानिकता को चुनौती दी है. उनका कहना है कि इन धाराओं से धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है. सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को भी केंद्र को नोटिस जारी कर मामले पर स्पष्टीकरण मांगा था लेकिन लगभग डेढ़ साल की अवधि में सरकार की ओर से अदालत में जवाब दाखिल नहीं किया जा सका है.

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थलों की स्थिति जैसी थी, उन्हें वैसा ही रखा जाएगा लेकिन अयोध्या के राम मंदिर के मामले को इससे अलग रखा गया. अयोध्या का मामला आजादी के पहले से अदालत में चल रहा था, इसलिए उसे इसमें छूट गई थी. कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया गया. सजा या जुर्माना मामले के हिसाब से तय होंगे. 1991 में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा सरकार देश में सांप्रदायिक तनाव को दूर करने के लिए ये कानून लाई थी.

1991 में ही यह कानून बनने के बाद वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने को लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इस पर मस्जिद प्रबंधन की ओर से पूजा स्थल कानून का हवाला देते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की गई थी. 1993 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित सुनवाई पर रोक लगा दी थी और मौके पर यथास्थिति बरकरार रखने का फैसला सुनाया था.

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