



नई दिल्ली. आज के दिन को क्या कहें काला दिवस या शौर्य दिवस? ये तो भविष्य में 6 दिसंबर 1992 का इतिहास लिखने वाले बुद्धिजीवी और इतिहासकार ही तय करेंगे. फिलहाल हम उपलब्ध मीडिया रिपोर्ट्स और जांच के लिए गठित किए गए आयोग की रिपोट्स के हवाले से बात करेंगे कि 6 दिसंबर की सुबह, दोपहर और शाम को कब, कैसे, क्या हुआ?
अयोध्या में 30 साल पहले (30 years ago) दिसंबर की इसी तारीख को बबरों मस्जिद को उन्मादित भीड़ ने ढहा दिया था. लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए एक दिन पहले यानी 5 दिसंबर 1992 की सुबह अभ्यास भी किया गया था. फिर 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया. इसके बाद 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने हिसाब से अपने फैसले से तमाम विवादों को हमेशा के लिए खत्म कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बाबरी मस्जिद की जगह राममंदिर निर्माण शुरू भी कर दिया गया और इस समय काफी तेजी से चल भी रहा है. हालांकि, इसके बाद भी कुछ संगठन और नेता समय-समय पर इस मुद्दे को उठाते रहते हैं. पिछले साल मुस्लिम समुदाय ने तय किया कि अयोध्या में काला दिवस नहीं मनाया जाएगा. अयोध्या के मुस्लिमों ने कहा था कि वह हिंदू समुदाय के साथ भाईचारे का माहौल बनाना चाहते हैं. लिहाजा इस तरह का कोई कार्यक्रम नहीं मनाया जाएगा. लेकिन, इस बार बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी फिर एक्शन में नजर आ रही है. उन्होंने जनसभा का ऐलान किया है. ऐसे में शासन प्रशासन किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए मुस्तैद हो गया है. इस बीच आइए जानते हैं कि 6 दिसंबर 1992 की सुबह कब क्या हुआ था?
लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट से हुए कई खुलासे
बाबरी मस्जिद को गिराने की तैयारी पहले से ही की जा रही थी. इसकी पुष्टि 2009 में गठित लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट भी करती है. रिपोर्ट के मुताबिक, 5 दिसंबर 1992 की सुबह इसके लिए अभ्यास किया गया था. अभ्यास से जुड़ीं कुछ तस्वीरें आयोग के सामने पेश की गईं थीं. एक दिन पहले की गहमा-गहमी के बाद 6 दिसंबर 1992 की सुबह भीड़ ‘जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो.’ जैसे नारे हर तरफ गूंज रहे थे. बाबरी मस्जिद से करीब 200 मीटर की दूरी पर बने स्टेज पर कई नेता, साधु-संत बैठे थे. इस मंच पर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कलराज मिश्र, रामचंद्र परमहंस और अशोक सिंहल मौजूद थे.
दोपहर में अचानक बदलता चला गया माहौल
फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में सुबह 9 बजे पूजा पाठ चल रहा था. लोग भजन-कीर्तन कर रहे थे. दोपहर 12 बजे के आसपास दोनों ने बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर का दौरा भी किया. हालांकि, दोनों ही ये भांपने में नाकाम रहे कि कुछ देर बाद ही वहां ऐसा कुछ भी होने वाला है, जिसे कई दशकों तक याद किया जाएगा. उनके दौरे के कुछ ही देर बाद वहां का माहौल एकदम बदल गया. विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल ने माइक से कहा कि हमारी सभा में कुछ अराजक तत्व घुस आए हैं. कहा जाता है कि विहिप की तैयारी मंदिर परिसर में सिर्फ साफ-सफाई और पूजा-पाठ की थी, लेकिन कारसेवक इससे सहमत नहीं थे.
संघ के कार्यकर्ताओं से भीड़ की हुई छीना-छपटी!
देखते ही देखते अचानक कारसेवकों की भीड़ नारे लगाते हुए विवादित स्थल में घुस गई. इसके बाद हर तरफ हंगामा और उपद्रव शुरू हो गया. भीड़ बाबरी मस्जिद के ऊपर चढ़ गई. थोड़ी ही देर में गुंबदों के चारो ओर काफी लोग चढ़ गए थे. उनके हाथों में कुदाल, छैनी-हथौड़ा थीं, जिनसे उन्होंने ढांचे को गिराना शुरू कर दिया. इस दौरान भीड़ कुदाल-फावड़े के साथ विवादित ढांचे की ओर बढ़ती जा रही थी. उन्हें रोकने की काफी कोशिश की गई. बताया जाता है कि इस दौरान संघ के कार्यकर्ताओं के साथ उन्मादी भीड़ की छीना-झपटी भी हुई, लेकिन वे उन्हें नहीं रोक पाए. कुछ देर में देखते ही देखते बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया.
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सीएम कल्याण सिंह ने उसी शाम पद से इस्तीफा दे दिया.
कल्याण सिंह ने लिखा था एक लाइन का इस्तीफा
दोपहर 2 बजे के आसपास मस्जिद का पहला गुंबद गिरा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले गुंबद के नीचे कुछ लोग दब भी गए थे. शाम 5 बजे तक भीड़ ने सभी गुंबद गिरा दिए. इस दौरान अर्द्धसैनिक बलों ने जब कारसेवकों को रोकने की कोशिश की, तो भीड़ ने उन पर ही पत्थर बरसाने शुरू कर दिए. इसके बाद कल्याण सिंह ने बाबरी मस्जिद विध्वंस की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शाम तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने अपना इस्तीफा सिर्फ एक लाइन में लिखा था. इसमें लिखा था, ‘मैं मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे रहा हूं, कृपया स्वीकार करिए.’ इसके बाद देशभर में ‘हिंसा का अंधेरा’ छाया, जिसे दशकों याद किया जाएगा.