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उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव होंगे या नहीं इसका फैसला होगा 27 दिसम्बर को

लखनऊ, यूपी नगर निकाय चुनाव में OBC आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को घंटों चली सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.

यूपी निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच 27 दिसंबर को अपना फैसला सुनाएगी. इससे निकाय चुनाव टलने के आसार बन गए हैं. हाईकोर्ट ने आज की सुनवाई में सीधे तौर पर ट्रिपल टेस्ट न कराने और 2017 के रैपिड टेस्ट को ही आधार मानकर इस बार भी आरक्षण देने पर सवाल उठाया.

हाईकोर्ट में सुबह 11.15 बजे सुनवाई शुरू हुई और शाम 3.45 बजे फैसला आया. याचिकाकर्ता के वकील ने सबसे पहले अपना पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण के लिए एक डेडिकेटेड कमीशन बनाया जाए, जो राजनीतिक पिछड़ेपन की रिपोर्ट दे. उसी पर अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण तय किया जाए. एडवोकेट पी एल मिश्रा बहस कर रहे थे. उन्होंने सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश सरकार 2021 केस में सुप्रीम कोर्ट का आदेश विस्तार से पढ़ा.

याचिकाकर्ताओं में शामिल आरटीआई एक्टिविस्ट संदीप पांडेय ने कहा कि कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि अगर 2017 के रैपिड सर्वे पर सवाल नहीं उठाया नहीं गया तो क्या आप मनमर्जी करते रहेंगे. पॉलिटिकल क्लास औऱ पॉलिटिकल कास्ट में जमीन आसमान का अंतर है. आप सामाजिक आर्थिक आधार पर तो बैकवर्ड हो सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से भी पिछड़े हों. बैकवर्ड रिजर्वेशन देना है, तो ट्रिपल टेस्ट प्रक्रिया के आधार पर ही राजनीतिक पिछड़ेपन को तय किया जा सकता है. कौन सी जातियां राजनीतिक तौर पर पिछड़ी जात मानी जाती हैं. जज ने कहा कि अगर मान भी लिया जाए कि आपका सर्वे सही है तो आपका आय़ोग कहां है.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश महाजन केस में निर्णय में स्पष्ट आदेश दिया था कि नगर निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण से पहले ट्रिपल टेस्ट कराया जाएगा. अगर तिहरा परीक्षण की शर्त पूरी नहीं की जाती है तो अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के अलावा बाकी सभी सीटों को सामान्य सीट घोषित करते हुए चुनाव कराया जाना चाहिए.

महिला आरक्षण को आरक्षण श्रेणी में रखने की बात आई. जबकि याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि महिला आरक्षण को 50% आरक्षण से बाहर रखा है. सरकारी वकील ने महिला आरक्षण को हॉरिजेंटल आरक्षण (क्षैतिज आरक्षण) बताया. सरकारी वकील ने माना कि राजनीतिक आरक्षण के लिए कोई आयोग नहीं बनाया गया है. ऐसे में कोर्ट ने पॉलिटिकल बैकवर्ड रिजर्वेशन और सोशल बैकवर्ड रिज़र्वेशन को अलग अलग माना.

सरकार की अलग दलीलें

यूपी सरकार ने अपनी आपत्ति में कहा था कि इस काम से चुनाव अधिसूचना में देरी होगी. यह भी कहा गया कि 5 दिसंबर की अधिसूचना का एक मसौदा है, इस पर असंतुष्ट पक्ष आपत्ति दाखिल कर सकते हैं. हाईकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ सरकार के तर्क से असंतुष्‍ट होकर चुनाव अधिसूचना के साथ ही 5 दिसंबर के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर भी रोक लगा दी थी.

इससे पहले मुख्य याचिकाकर्ता ने लंच ब्रेक होने पर बताया था कि अदालत में हर तथ्य रखे गए हैं और कोर्ट ने पूरी बातें सुनी हैं. एलपी मिश्रा जो हमारे मुख्य वकील हैं, उन्होंने अपना पक्ष रख दिया है. यूपी सरकार का पक्ष रखा जा गया है. 1990 के मंडल कमीशन में 20 फीसदी आरक्षण का पक्ष रखा है, सरकार ने उसी को आधार माना है, उसी पर नोटिफिकेशन दिया है. लेकिन हम लोगो की यही लगातार मांग है कि मंडल कमीशन में केवल सोशल आयोग बनाने की बात चल रही है.सुरेश महाजन के फैसले को लेकर हम लोग मांग कर रहे है कि राजनीतिक आरक्षण कवर नही हो रहा है.

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