Date :

Foreign Banks in India: आखिर क्यों विदेशी बैंक भारत से अपना कारोबार समेट रहे हैं? जानिए क्या है हकीकत

नई दिल्ली, साल 2011 से लेकर 20 मार्च 2023 तक भारत से लगभग 12 विदेशी बैंकों ने या तो अपना कारोबार समेटा है या कारोबार बंद कर दिया है।Foreign Banks in India: पिछले दिनों एक्सिस बैंक ने अमेरिका के सिटी बैंक के भारतीय बाजार का अधिग्रहण कर लिया था। इस तरह सिटी बैंक ने भारत से अपना व्यापार समेट लिया है। इससे पहले भी कई विदेशी बैंकों ने भारतीय बैंकिंग बाजार से अपने हाथ खींच लिए हैं। साल 2011 से देखें तो सालाना औसतन एक विदेशी बैंक ने भारत से अपना कारोबार समाप्त किया है।

दुनिया की बात करें तो 1406 में इटली के जेनोवा में ‘बैंको दि सैन जिओर्जिओ’ (सेंट जॉर्ज बैंक) नाम से पहला बैंक बना। जबकि द मद्रास बैंक, भारत का पहला बैंक था। इसकी स्थापना 1683 में हुई। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश सरकार के कालखंड में कई और बैंक खुले और अलग-अलग कारणों से बंद होते चले गये।

इस दौरान सबसे महत्वपूर्ण बैंक जो खुले, वे 1806 में बैंक ऑफ कलकत्ता (बाद में बैंक आफ बंगाल बना) और 1840 में बैंक ऑफ बॉम्बे व 1843 में बैंक ऑफ मद्रास थे। इन्ही तीनों बैंको को मिलाकर 1921 में इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया बनाया गया, जिसका नाम स्वतंत्र भारत में भारतीय स्टेट बैंक हो गया।

इसी बीच अन्य बड़े भारतीय बैंक जैसे 1855 में इलाहाबाद बैंक, 1894 में पंजाब नेशनल बैंक, 1906 में बैंक ऑफ इंडिया, 1908 में बैंक ऑफ बड़ौदा, 1911 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और 1935 में रिजर्व बैंक की स्थापना हुई। साल 1949 में रिजर्व बैंक का राष्ट्रीयकरण होकर यह भारत सरकार के अधीन हो गया।

19 जुलाई 1969 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 14 बड़े बैंकों – सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक, यूको बैंक, केनरा बैंक, यूनाइटेड बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का राष्ट्रीयकरण कर दिया। यानी निजी हाथों से निकलकर ये सभी बैंक सरकार के अधीन हो गये।

फिर साल 1980 में भी 6 बैंकों – आंध्रा बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, न्यू बैंक ऑफ इंडिया, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब एंड सिंध बैंक और विजया बैंक का भी राष्ट्रीयकरण किया गया।

एक्सचेंज बैंक के रूप में भारत का पहला विदेशी बैंक ‘द बैंक आफ इंडिया’ था। यह 1836 में खुला। एक्सचेंज बैंक के ही तहत 1840 में बैंक ऑफ एशिया ने भारत में अपनी शाखा खोली। फिर 1870 के आसपास विदेशी बैंकों ने पूरी तरह से भारत में कारोबार करना शुरू किया। इस दौरान भारत में तीन विदेशी बैंक कार्यरत थे। जिनमें जमा राशि ₹52 लाख थी, जो भारत के कुल बैंकों में जमा राशि का 4.2 प्रतिशत थी।

1880 तक एक और विदेशी बैंक खुल गया। तब इन सभी बैंकों में कुल जमा राशि ₹340 लाख थी। फिर अगले एक दशक में एक ही नया विदेशी बैंक खुला और कुल जमा राशि ₹750 लाख तक बढ़ गयी। इसी तरह साल 1900 तक भारत में विदेशी बैंकों की संख्या बढ़कर 8 हो गयी और कुल जमा राशि भी बढ़कर ₹1050.4 लाख तक पहुंच गयी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत में कार्यरत 9 विदेशी बैंकों में कुल जमा राशि ₹5338 लाख थी।

फिलहाल 2022 तक भारत में 46 विदेशी बैंकों की लगभग 300 शाखाएं कार्यरत थीं। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक भारत में सबसे बड़ा विदेशी बैंक है। गौरतलब है कि भारत में विदेशी बैंकों के शाखा नेटवर्क की कुल एक प्रतिशत हिस्सेदारी है। वहीं देश के बैंकिंग क्षेत्र के मुनाफे में 11 प्रतिशत का योगदान है। अगर भारत में विदेशी बैंकों की कुल पूंजी की बात करें तो वित्तीय वर्ष 2020-21 में ₹12,36,476 करोड़ रूपये और 2021-22 में ₹13,64,416 करोड़ थी।

क्यों घट रही हिस्सेदारी?

भारत में विदेशी बैंक तीन तरीकों से काम कर सकते हैं। पहला अपनी शाखा खोलकर, दूसरा कंपनी के तहत और तीसरा संपर्क कार्यालय खोलना। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ही इन विदेशी बैंकों को दिशा-निर्देशित करता है। जिनकी अवहेलना होने पर आरबीआई द्वारा दंड अथवा जुर्माना भी लगाया जाता हैं।

 

नवंबर 2013 में आरबीआई ने डब्ल्यूओएस (पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी) योजना लागू की। जिसके अनुसार भारत में विदेशी बैंक एक कंपनी के रूप काम करेंगे और जो पहले भारत में व्यापार कर रहे हैं उन्हें भी अपनी शाखाओं को कंपनी में परिवर्तित करना होगा। यह बदलाव इसलिए किया गया क्योंकि विदेशी बैंक के अपने देश में मनी लॉन्ड्रिंग, खराब वित्तीय स्थिति, नियामक दंडात्मक कार्रवाई जैसे अनेक जोखिम होते हैं। जिसका प्रभाव भारत में उसकी शाखा पर भी पड़ता है। इसलिए आरबीआई चाहता है कि विदेशी बैंक डब्ल्यूओएस स्थापित करे। गौरतलब है कि अनेक विदेशी बैंकों ने इस नये नियम का अनुसरण नहीं किया और भारत से अपना व्यापार समेटना शुरू कर दिया।

भारत में विदेशी बैंकों की हिस्सेदारी 2005 में 6.55 प्रतिशत थी। अमेरिकी आर्थिक मंदी के चलते 2010 में घटकर 4.65 प्रतिशत रह गयी। फिर जब आरबीआई ने डब्ल्यूओएस नियम बनाया तो यह 2015 में और घटकर 4.41 प्रतिशत हो गयी। फिर 2020 में 4.15 प्रतिशत रह गयी। गौरतलब है कि इन बीते सालों में कई बड़े विदेशी बैंक जैसे बर्कलेज, एचएसबीसी, मॉर्गन स्टेनली, मेरिल लिंच, आरबीएस, डॉयचे बैंक और सिटी बैंक ने या तो भारत में अपने कारोबार को बंद कर दिया है या फिर अपनी हिस्सेदारी बेची है।

Related Posts

Cricket

Panchang

Gold Price


Live Gold Price by Goldbroker.com

Silver Price


Live Silver Price by Goldbroker.com

मार्किट लाइव

hi Hindi
X