डॉक्टर और स्वास्थ्य सेवाएं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के दायरे से बाहर नहीं, उपभोक्ता दर्ज कर सकते हैं शिकायत, सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के दायरे से बाहर नहीं रखा गया है। शीर्ष अदालत ने इस संबंध में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सही करार देते हुए मेडिको लीगल एक्शन ग्रुप की याचिका खारिज कर दी।

 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ व जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने शुक्रवार को कहा, महज 2019 के अधिनियम द्वारा 1986 के अधिनियम को निरस्त करने से डॉक्टरों द्वारा मरीजों को प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं को ‘सेवा’ शब्द की परिभाषा से बाहर नहीं किया जाएगा। याचिकाकर्ता की दलील थी कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत डॉक्टरों के खिलाफ उपभोक्ता शिकायतें दर्ज नहीं की जा सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने अक्तूबर 2021 में याचिका खारिज कर दिया था।

याचिका में विधेयक पेश करते वक्त केंद्रीय मंत्री के बयान का हवाला दिया गया। मंत्री ने तब कहा था, स्वास्थ्य सेवाएं विधेयक के तहत शामिल नहीं। पीठ ने कहा, मंत्री का बयान कानून के दायरे को सीमित नहीं कर सकता।

याचिकाकर्ता ने दलील दी, 1986 के कानून में ‘सेवाओं’ की परिभाषा में स्वास्थ्य सेवा का उल्लेख नहीं था। इसे नए अधिनियम के तहत शामिल करने का प्रस्ताव था। अंतत: हटा दिया गया। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, अधिनियम में ‘सेवा’ की परिभाषा व्यापक है। यदि संसद इसे बाहर करना चाहती तो वह इसे स्पष्ट रूप से कहती।

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि 2002 में तत्कालीन सरकार द्वारा हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (एचजेडएल) की 26 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के मामले में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले साल आए आदेश के बाद सीबीआई ने यह कार्रवाई की है।

पीठ ने इसके बाद मेहता को इस मामले की ताजा स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई ग्रीष्मावकाश के बाद होगी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 18 नवंबर को इस मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया था।

शीर्ष अदालत का यह आदेश बिक्री के करीब दो दशक बाद आया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार ने 2002 में एचजेडएल की 26 फीसदी हिस्सेदारी सामरिक साझेदार एसओवीएल को बेची थी। शीर्ष अदालत ने सीबीआई को एफआईआर दर्ज कर उक्त मामले में कथित अनियमितता की जांच का आदेश दिया था।

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