मानवता की मिसाल : लावारिस शवों का हिंदू रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार कर रहे हैं इंदौर के करीम खान

इंदौर , शहर में सुल्तान इंदौर एकता सेवा समिति के करीम खान द्वारा एक अनोखी मिसाल कायम की गई है जिनके द्वारा पिछले कुछ सालों में कई लावारिस शवों का अंतिम संस्कार मुस्लिम होने के बावजूद हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया है।

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देश के सबसे साफ सुथरे शहर इंदौर में सुल्तान इंदौर एकता सेवा समिति के करीम खान इंसानियत की अनोखी मिसाल पेश कर रहे हैं. इंदौर के एम.वाय.हॉस्पिटल में पहुंचने वाले अज्ञात हिंदू लोगों के शव का अंतिम संस्कार इनके द्वारा जूनी इंदौर मुक्तिधाम में पंडित श्याम शर्मा की मौजूदगी में हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक किया जाता है।

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करीम खान का कहना है कि 1996 से वह और उनके भाई फिरोज खान करीब 25 सालों से अज्ञात लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं. वैसे उनका परिवार 1978 से यहां अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार करता आ रहा है. और अब यही परंपरा निभाते हुए उनकी तीसरी पीढ़ी के भतीजे भी साथ में आ खड़े हुए हैं. करीम खान का कहना है कि यह काम तो मानवता है. ईश्वर ने बनाया है उन्हीं की चीज उन्हें अर्पित कर देते हैं जिनका कोई नहीं होता है. लावारिस होते हैं उन्हें हम अपने हाथों से मुखाग्नि देते हैं और अर्थी से लेकर लकड़ी तक का इंतजाम व वाहन उपलब्ध करवाना सब हमारे द्वारा ही किया जाता है. जिसमें हमारे पूरे परिवार का सहयोग भी मिलता है।

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परिवार को भी लगता है कि आज हमने कुछ अच्छा कार्य किया है नहीं तो अपना जीवन तो सभी जी रहे हैं. यह कार्य करके हमें जो अनुभूति होती है इसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. वहीं जूनि इन्दौर मुक्ति धाम में अंतिम क्रिया सम्पन्न कराने वाले पंडित श्याम शर्मा का कहना है कि यह जो कार्य कर रहे हैं. परमार्थ का काम कर रहे हैं. भगवान ने जो जीवन दिया है वह एक दूसरे की सहायता के लिए दिया है. यह काम जो इनके द्वारा किया जा रहा है. इससे मरने वाले को भी शांति मिलती है।

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उनके मुताबिक यह प्रक्रिया उनके पिताजी से शुरू हुई थी जब उनके बेटे व भतीजे दी तीसरी पीढ़ी अनवरत जारी रखेंगे. करीम खान ने धर्म जाति से ऊपर उठकर एक मिसाल पेश की है. जिन्हें शहर भर में उनके परिवार द्वारा चलाई जा रही मुहिम को सराहा भी जा रहा है।

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