जानिए कैसे यहूदियों ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर बनाया था अपना देश इजराइल

नई दिल्ली, इजराइल और हमास के बीच एक बार फिर भिड़ंत हो गई है। हमास ने गाजा स्ट्रिप से इजरायल के ऊपर 5000 रॉकेट्स दागने का दावा किया है। इस हमले में अब तक 40 इजराइली नागरिकों की मौत हो गई है। अब दोनों तरफ से वार पलटवार का दौर जारी है। इतना ही नहीं बढ़ते संघर्ष को देखते हुए इजराइल में आपातकाल लागू कर दिया गया है। बता दें कि हमास एक फिलस्तिनी चरमपंथी संगठन है। यह फिलिस्तीन से इजराइल पर हमले करता रहता है।

बता दें कि इजराइल-फिलस्तीन विवाद 100 साल से भी ज्यादा पुराना है। जिस तरह से अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा किया था ठीक उसी प्रकार इजराइलियों ने फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया था   प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन सल्तनत की हार के बाद फिलस्तीन के हिस्से को ब्रिटेन ने अपने कब्जे में ले लिया। उस वक्त इजराइल नाम से कोई देश था ही नहीं । इजरायल से लेकर वेस्ट बैंक तक के क्षेत्र को फिलस्तीनी क्षेत्र के तौर पर जाना जाता था। यहां पर अल्पसंख्यक यहूदी और बहुसंख्यक अरब रहा करते थे। यह स्पष्ट कर दें कि फिलस्तीनी लोग यहीं के रहने वाले अरब थे, जबकि यहूदी लोगों को वहां बाहरी कहा जाता था।

फिलस्तीनी अरब लोगों और यहूदियों के बीच संघर्ष की शुरुआत तब हुई, जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को कहा कि वह यहूदी लोगों के लिए फिलस्तीन को एक ‘राष्ट्रीय घर’ (National Home) के तौर पर स्थापित करे। यहूदियों का भी कहना था कि फिलस्तीन उनके पूर्वजों का घर है। वहीं बहुसंख्यक अरब यहां पर फिलस्तीन नाम से एक नया देश बनाना चाहते थे।

1920 और 1940 के दशक के बीच, फिलिस्तीन पहुंचने वाले यहूदियों की संख्या में अचानक वृद्धि होने लगी, कई लोग द्वितीय विश्व युद्ध के नरसंहार के बाद मातृभूमि की तलाश करने लगे। 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने के लिए मतदान किया, साथ ही यरूशलेम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बना दिया। लेकिन फिलिस्तीनी अरबों ने इस कदम का पुरजोर विरोध किया।

 

1948 में ब्रिटिश शासको के चले जाने के बाद यहूदी नेताओं ने इजराइल राज्य के निर्माण की घोषणा की। इसलिए, यहूदियों के लिए एक नए देश का जन्म हुआ और फिलिस्तीनी अरबों ने रातों-रात अपना देश खो दिया, जिससे उन्हें युद्ध छेड़ने के लिए प्रेरित होना पड़ा।

इजराइल पर फिर हुआ आक्रमण, लेकिन फिर भी यहूदियों की हुई जीत
यहूदियों की खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकी क्योंकि पड़ोसी अरब देशों जॉर्डन, सीरिया और मिस्र के सैनिकों ने इजराइल पर आक्रमण किया। वहीं अमेरिका, ब्रिटिश और पश्चिमी गुप्त समर्थन से इजराइल ने युद्ध जीत लिया और पड़ोसी देशों के अधिक क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया सैकड़ों-हजारों फिलिस्तीनी भाग गए और उन्हें अपने घरों से बाहर निकलने और पड़ोसी देशों में शरणार्थियों के रूप में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा।

 

साल 1961 में शीर्ष यहूदियों के नरसंहार के सूत्रधारों में एक माने जानेवाले एडॉल्फ़ इचमैन यरूशलम में मुकदमे के दौरान. इसराइल के एजेंटों ने उन्हें अर्जेंटीना में पकड़ा था. कई हफ़्तों तक अदालत में इचमैन के सामने जब नरसंहार के गवाहों को पेश किया गया था तो उनके दिए ख़ौफ़नाक ब्योरे से इसराइली लोग जड़ से हो गए थे. इचमैन को दोषी पाया गया और साल 1962 में उन्हें फांसी दे दी गई.

1967 की छह दिन की लड़ाई ने मध्य-पूर्व का नक्शा बदल दिया. इसराइल ने मिस्र पर हमला किया जिसके नेता ने यहूदी देश को मिटा देने की धमकी दी थी. उसके बाद मिस्र, जॉर्डन और सीरिया के साथ हुए संघर्ष का अंत इसराइल द्वारा सिनाई प्रायद्वीप, ग़ज़ा, पूर्वी यरूशलम, पश्चिमी तट और गोलान पहाड़ी पर कब्ज़े के रूप में हुआ था. इसके बाद 2000 साल में पहली बार प्राचीन यरूशलम का धार्मिक रूप से बेहद पवित्र समझी जानेवाली वेस्टर्न वॉल यहूदियों के कब्ज़े में आई थी.

इसराइल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना 1976 में हुई जब इसराइली कमांडो ने यूगांडा के एंतेबे एयरपोर्ट पर रेड कर सौ से ज़्यादा बंधकों को मुक्त कराया था. इन्हें फ़लस्तीनी और फ़लस्तीन समर्थक अपहरणकर्ताओं ने बंधक बनाया था. इनमें से ज़्यादातर इसराइली या यहूदी थे. मुक्त कराए जाने के बाद बंधकों को इसराइल ले जाया गया था. इस ऑपरेशन में कमांडो फ़ोर्स के प्रमुख योनी नेतन्याहू ( मौजूदा प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के भाई) की मौत हो गई थी.

दो धुर विरोधियों के बीच ऐतिहासक हैंडशेक – इसराइली प्रधानमंत्री यित्ज़ाक राबिन और फ़लस्तीनी मुक्ति संगठन के नेता यासिर अराफ़ात ने इसराइल-फ़लस्तीनी संघर्ष का अंत कर उम्मीद के एक नए युग की शुरुआत की थी. सितंबर 1993 में कई हफ़्तों तक चली गुप्त बातचीत के बाद अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मौजूदगी में व्हाइट हाउस के प्रांगण में अंतरिम शांति समझौते पर दस्तख़त किया गया था.

दो साल बाद यित्ज़ाक राबिन की तेल अवीव में एक शांति मार्च के दौरान हत्या कर दी गई थी. ये हत्या एक राष्ट्रवादी यहूदी चरमपंथी ने की थी जो शांति समझौते के ख़िलाफ़ थे. इस हत्या से इसराइल और दुनियाभर में शोक की लहर दौड़ गई थी. उनके अंतिम संस्कार में दुनिया भर के नेता जुटे थे.

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