गांधीनगर, नरेंद्र मोदी सरकार की मुखर आलोचना करने वाले आईपीएस संजीव भट्ट ड्रग जब्ती मामले में दोषी पाए गए हैं । गौरतलब है कि उन्होंने अपनी बर्खास्तगी से पहले सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार की मिलीभगत का आरोप लगाया गया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 2015 में सेवा से उनकी बर्खास्तगी ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति के आधार पर की गई थी.
और अब गुजरात की एक अदालत ने 1996 के ड्रग्स जब्ती मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को दोषी ठहराया है. पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट को एनडीपीएस मामले में पालनपुर कोर्ट ने दोषी पाया.
कोर्ट में संजीव भट्ट को सजा सुनाई जाएगी. संजीव भट्ट को कोर्ट से पालनपुर सबजेल ले जाया गया. संजीव भट्ट पर 1996 में पालनपुर के एक होटल में राजस्थान के एक वकील के कमरे में गलत तरीके से ड्रग्स रखने, दुकान खाली करने की धमकी देने और वकील को लालच देने का आरोप था. 5 सितंबर 2018 को संजीव भट्ट को सीआईडी क्राइम ने गिरफ्तार किया था.
पिछले साल अगस्त में गुजरात हाईकोर्ट ने 27 साल पुराने ड्रग प्लांटिंग मामले में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिका को खारिज कर दिया था. ‘संजीव राजेंद्रभाई भट्ट बनाम गुजरात राज्य’ में भट्ट की एफआईआर को खारिज करने की अपील शामिल थी. एकल-न्यायाधीश के रूप में अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति समीर दवे ने एफआईआर को रद्द करने के लिए भट्ट के आवेदन को खारिज कर दिया और भट्ट के वकील के अनुरोध के बावजूद, तत्काल आदेश के प्रभाव पर रोक लगाने या एक महीने के लिए मुकदमे की कार्यवाही रोकने से इनकार कर दिया.
गौरतलब है कि इस मामले की शुरुआत 1996 से तब होती है, जब राजस्थान के एक वकील को बनासकांठा पुलिस ने राजस्थान के पालनपुर में उसके होटल के कमरे से ड्रग्स की जब्ती के बाद गिरफ्तार किया था. इस दौरान भट्ट बनासकांठा में पुलिस अधीक्षक थे. लेकिन गिरफ्तारी के बाद राजस्थान पुलिस ने आरोप लगाया कि भट्ट की टीम ने संपत्ति विवाद के सिलसिले में वकील को गलत तरीके से परेशान करने के लिए झूठा मामला दर्ज किया था. वहीं एक अलग कानूनी प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल फरवरी में भट्ट की एक याचिका खारिज कर दी थी. याचिका का उद्देश्य जनवरी 2023 के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देना था, जिसने मुकदमे को पूरा करने की समय सीमा 31 मार्च, 2023 तक बढ़ा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को ‘व्यर्थ’ माना और भट्ट पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया