Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट की अहम् टिप्पणी- आरोपी को बिना सुनवाई के लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अगर किसी व्यक्ति को बिना मुकदमा चले लंबे समय तक जेल में रखा गया है, तो उसे सजा मान लेना सही नहीं है। शीर्ष कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक ड्रग्स मामले में गिरफ्तार आरोपी को जमानत दी। जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने देखा कि याचिकाकर्ता पिछले पांच साल दो महीने से जेल में है, जबकि यह मामला 2019 में दर्ज हुआ था और मुकदमा अब तक शुरू नहीं हुआ है।

राज्य सरकार के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि जिस सह-आरोपी को जमानत मिली थी, वह कोर्ट में पेश नहीं हो रहा है। इस पर कोर्ट ने कहा, इस कोर्ट ने कई मामलों में कहा है कि बिना मुकदमा शुरू हुए किसी को लंबे समय तक जेल में रखना और उसे सजा मान लेना कानून के खिलाफ है। यह सुनवाई आरोपी की उस याचिका पर हो रही थी, जिसमें उसने मार्च 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जमानत खारिज करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

जब राज्य की तरफ से यह दलील दी गई कि सह-आरोपी कोर्ट नहीं आ रहा है, तब बेंच ने कहा, राज्य को हमेशा यह अधिकार है कि वह उसकी जमानत रद्द करवाने के लिए कदम उठाए। लेकिन सिर्फ इस वजह से याचिकाकर्ता को सजा नहीं दी जा सकती कि दूसरा आरोपी कोर्ट नहीं आ रहा है। कोर्ट ने आदेश दिया कि ग्रेटर नोएडा में दर्ज इस मामले में याचिकाकर्ता को निचली कोर्ट द्वारा तय शर्तों के आधार पर जमानत दी जाए। आरोपी को जनवरी 2019 में गिरफ्तार किया गया था, यह मामला मादक पदार्थ अधिनियम (NDPS Act) के तहत दर्ज है।

हाईकोर्ट में आरोपी ने कहा था कि उसे उस जगह से गिरफ्तार नहीं किया गया जहां से 150 किलो गांजा बरामद हुआ था। उसके वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी थी कि बाकी सभी सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है, इसलिए उसे भी समानता के आधार पर जमानत मिलनी चाहिए।
ठोस कचरा प्रबंधन पर राज्यों को सख्त निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारों को आदेश दिया कि वे ठोस कचरे के 100% संग्रह और छंटाई (सेग्रिगेशन) की निगरानी के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति करें। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि राज्यों को चाहिए कि वे जमीनी हकीकत के आधार पर यह आकलन करें कि कितना कचरा पैदा हो रहा है और यह भी तय करें कि यह लक्ष्य (100% कचरा प्रबंधन) कब तक पूरा किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा, इन दोनों मुद्दों से जुड़े नोडल अधिकारी हर तीन महीने में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करें, जिसकी शुरुआत 1 सितंबर 2025 से हो। सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि ये रिपोर्ट उस बेंच तक पहुंचे जो इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने ये भी कहा, जब तक 2016 के ठोस कचरा प्रबंधन नियमों की जानकारी ठीक से नहीं दी जाती और पालन न करने पर सजा तय नहीं होती, तब तक ये नियम प्रभावी नहीं हो सकते। इसलिए, एनसीआर के सभी राज्य और दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाएं।
स्कूल में आतंकवादी के बच्चे कहा जा रहा’, सुप्रीम कोर्ट में आरोपी का बयान
मुंद्रा ड्रग्स बरामदगी मामले के एक आरोपी ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एनआईए द्वारा ड्रग्स की कमाई का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में होने का आरोप लगाए जाने के बाद उसके बच्चों को स्कूल में आतंकवादी कहा जा रहा है और उन्हें स्कूल से वापस लाना पड़ा।

जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह की बेंच को वरिष्ठ वकील ए सुंदरम ने बताया कि उनके मुवक्किल हरप्रीत सिंह तलवार उर्फ कबीर तलवार की जमानत पर सुनवाई के दौरान एनआईए के एक वकील ने यह दावा किया कि पैसे का इस्तेमाल पहलगाम जैसे आतंकी हमलों में हुआ।

सुंदरम ने कहा, बच्चों को स्कूल में आतंकवादी के बच्चे कहा जा रहा है। उन्हें स्कूल से वापस लाना पड़ा। ये बातें अखबारों और मीडिया में छा गईं। एनआईए ने ये बातें बिना किसी ठोस आधार के एक ड्रग्स केस में कह दीं। जस्टिस सूर्यकांत ने उन्हें शांत किया और कहा, कोई भी व्यक्ति चाहे उसने कुछ गलत किया हो या नहीं, उसके परिवार वालों को तकलीफ नहीं होनी चाहिए। उन्होंने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, इस बात का ध्यान रखा जाए। हम ज़्यादा कुछ नहीं कहेंगे, आप जानते हैं क्या करना है।

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