लखनऊ, लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती. ऐसी शानदार शायरी करने वाले देश के मशहूर शायर मुनव्वर राणा का 71 साल की उम्र में निधन हो गया है। दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी मौत हुई और उन्होंने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया। पिछले कई दिनों से ही राणा की तबीयत खराब चल रही थी और वे पीजीआई में भर्ती थे।
लेकिन रविवार देर रात उन्हें अचानक से हार्ट अटैक आया और उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
बताया जा रहा है कि मुनव्वर राणा को किडनी संबंधी कई बीमारियां चल रही थीं, उनका लंबे समय से इलाज जारी था। कुछ दिन पहले ही उन्हें चेस्ट में पेन की शिकायत हुई थी जिसके बाद फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वहां भी वे ऑक्सीजन सपोर्ट पर ही चल रहे थे और उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। लेकिन अब उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ दिया है। उनके परिवार की तरफ से उनके निधन की पुष्टि कर दी गई है। साहित्य जगत में इस समय शोक की लहर है, हर कोई इस महान शायर के जाने से दुखी है।
मुनव्वर राणा का जीवन सिर्फ उनके शेरों-शायरी की वजह से चर्चा में नहीं रहता था, बल्कि सियासी रूप से भी वे काफी सक्रिय रहते थे। राजनीति का कोई भी मुद्दा क्यों ना हो, मुनव्वर राणा की तरफ से हमेशा बयान दिया जाता था। उनका सुर्खियों में बने रहने का सिलसिला पूरे जीवन कायम रहा। कभी विवादों की वजह से उन्हें लाइमलाइट मिली तो कभी उनके शेरों ने भी कई महफिलों को आबाद करने का काम किया। लेकिन एक बात समान रही, उनका व्यक्तित्व समय के साथ बढ़ता गया, सफलता की सीढ़ी उन्होंने कई बार चढ़ी।
उनके जीवन का एक पहलू ये भी रहा कि उन्हें साल 2012 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। लेकिन कुछ साल बाद ही उन्होंने उस अवॉर्ड को ये कहकर वापस कर दिया कि देश में असहिष्णुता बढ़ गई है। उनकी तरफ से तब कसम खाई गई थी कि वे कभी भी कोई सम्मान स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे ही थे मुनव्वर राणा, अपनी बातों के अडिग और जुबान से कुछ तल्ख।
शायर के निजी जीवन की बात करें तो उनका जन्म यूपी के रायबरेली में 26 नवंबर, 1952 को हुआ था। बंटवारे की आग उनके परिवार पर भी पड़ी थी और उनके कई रिश्तेदार पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन मुनव्वर के पिता को भारत प्यारा था, ऐसे में वे अपने परिवार के साथ यहीं रुक गए। इसके बाद कोलकाता में राणा की शुरुआती शिक्षा पूरी हुई।