



नई दिल्ली उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक स्कूल शिक्षिका द्वारा छात्रों से एक मुस्लिम छात्र को थप्पड़ मरवाने के वायरल वीडियो को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की अंतरात्मा को झकझोर देने वाला बताया है।
कोर्ट ने यूपी पुलिस की खिंचाई करते हुए मामले में दर्ज एफआईआर की जांच एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी से कराने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने अपराध होने के बावजूद पीड़ित के पिता की शिकायत पर शुरू में एनसीआर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की खिंचाई की। घटना को “गंभीर” बताते हुए पीठ ने आदेश दिया कि दो सप्ताह की देरी के बाद दर्ज की गई एफआईआर की जांच एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी करेंगे।
शीर्ष अदालत एफआईआर में सांप्रदायिक आरोपों नहीं होने पर भी आश्चर्यचकित दिखाई दी।इसके अलावा, पीठ ने यह भी पाया कि प्रथम दृष्टया राज्य सरकार शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम के आदेश का पालन करने में विफल रही, जहां शारीरिक दंड और धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव सख्त वर्जित है।
शीर्ष अदालत ने टिप्पणी में कहा कि अगर किसी छात्र को केवल इस आधार पर दंडित करने की मांग की जाती है कि वह एक विशेष समुदाय से है, तो कोई गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती। इसने राज्य सरकार से आरटीई अधिनियम के कार्यान्वयन पर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा और पेशेवर परामर्शदाताओं द्वारा पीड़ित और अन्य छात्रों को परामर्श देने का निर्देश दिया।
साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका याचिकाकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता और महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी के अधिकार क्षेत्र पर राज्य सरकार द्वारा उठाई गई आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। इससे पहले 6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस से जांच की स्थिति और पीड़ित और उसके परिवार की सुरक्षा के लिए किए गए उपायों के बारे में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
पिछले दिनों मुज़फ़्फ़रनगर से एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एक निजी स्कूल की शिक्षिका के आदेश पर साथी छात्रों को 7 वर्षीय बच्चे को थप्पड़ मारते देखा गया था। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में घटना की समयबद्ध और स्वतंत्र जांच के निर्देश देने और स्कूलों में धार्मिक अल्पसंख्यक छात्रों के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने की मांग की गई है।