झांसे में आ गई योगी सरकार, 13500 करोड़ का MOU कराने वाला निकला नटवरलाल, अधिकारी भी खा गए गच्चा

लखनऊ, उत्तर प्रदेश के सभी 75 जिलों में 750 डाटा सेंटर बनाने का दावा करने वाली कंपनी व्यूनाउ मार्केटिंग सर्विसेज लिमिटेड और व्यूनाउ इंफ्राटेक फर्जी निकली। कंपनी के प्रबंध निदेशक ने कागजों में फर्जीवाड़ा कर अफसरों को गुमराह करते हुए एमओयू की चाल चली।

शीर्ष अधिकारियों ने कंपनी की पृष्ठभूमि की जांच नहीं की, जिसका फायदा उठाकर मास्टरमाइंड सुखविंदर सिंह खरोर ने अपनी टीम के साथ 3,558 करोड़ रुपये निवेशकों से बटोर लिए। विदेश भागने की कोशिश के दौरान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उसे उसकी पत्नी सहित इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर गिरफ्तार कर लिया।

दिशा-निर्देशों की अनदेखी पड़ी भारी

निवेश मामलों में सरकार ने गलतियों को रोकने के लिए जीरो टॉलरेंस नीति लागू कर रखी है, जिसके तहत निवेश प्रस्तावों को मंजूरी दी जाती है। लेकिन इस मामले में अधिकारियों की लापरवाही भारी पड़ गई और फर्जी कंपनी को एमओयू की मंजूरी मिल गई।

निवेशकों को फंसाने के लिए ‘क्लाउड पार्टिकल घोटाला’

एमओयू के दौरान मास्टरमाइंड सुखविंदर सिंह ने दावा किया था कि उसकी कंपनी राज्य के सभी 75 जिलों में 750 डाटा सेंटर बनाएगी। सरकार के साथ किए गए इस एमओयू का उसने जमकर फायदा उठाया और ‘क्लाउड पार्टिकल घोटाले’ को अंजाम दिया।

इस घोटाले के तहत निवेशकों को फर्जी सेल एंड लीज-बैक मॉडल के जरिए लुभाया गया। इस मॉडल के तहत डाटा सेंटर की स्टोरेज क्षमता को छोटे-छोटे हिस्सों में लीज पर देने का ऑफर दिया गया। इस चालबाजी में हजारों निवेशक फंस गए और बाजार से हजारों करोड़ रुपये बतौर निवेश आ गए। सुखविंदर ने इस रकम से डाटा सेंटर स्थापित करने की बजाय उसे विदेश भेज दिया।

ईडी ने शुरू की जांच

इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नोएडा पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर अपनी जांच शुरू की। जांच में खुलासा हुआ कि कंपनी का कोई वास्तविक आधार नहीं था और यह पूरी तरह से फर्जीवाड़ा था।

सभी एमओयू की होगी गहन जांच

घोटाले के बाद सरकार ने वैश्विक निवेशक सम्मेलन में किए गए निवेश समझौतों की गहन जांच के निर्देश दिए हैं। सभी कंपनियों का इतिहास और वास्तविकता परखने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। अगर कोई कंपनी संदिग्ध पाई जाती है, तो उसका एमओयू रोकने या रद्द करने के आदेश भी जारी किए जा सकते हैं। हालांकि, इस फर्जीवाड़े में अधिकारी सावधानी बरतने में नाकाम साबित हुए, जिससे यह बड़ा घोटाला संभव हो सका।

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